“जब शिक्षक ने खुद भी अपनी आँखें बंद कर लीं…”

शिक्षक

“प्रणाम… सर! मुझे… पहचाना??”

“कौन?”
“भाई, बता दो… शरीर अब साथ नहीं देता मेरा।”

“सर, मैं आपका स्टूडेंट… 45 साल पहले का… आपका विद्यार्थी।”

“ओह! अच्छा… आजकल ठीक से दिखता नहीं बेटा और याददाश्त भी कमजोर हो गई है… इसलिए नहीं पहचान पाया… खैर, आओ बैठो।”
(उन्होंने उसे प्यार से बैठाया और पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा…)
“क्या करते हो आजकल?”

“सर, मैं भी आपकी ही तरह शिक्षक बन गया हूँ।”

“वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन बेटा… शिक्षक की पगार तो बहुत कम होती है, फिर तुम शिक्षक क्यों बने…??”

“सर, जब मैं ग्यारहवीं कक्षा में था, तब हमारी कक्षा में एक घटना घटी थी… उसी दिन आपने मुझे बचाया था… और उसी दिन मैंने ठान लिया था कि मैं शिक्षक ही बनूँगा… और वह भी बिल्कुल आपके जैसा। आज वो बात फिर से आपको याद दिलाता हूँ… शायद मुझे भी याद आ जाए आपको।”

“अच्छा? क्या हुआ था तब?”

“सर, सातवीं में हमारी कक्षा में एक बहुत अमीर लड़का पढ़ता था… जबकि हम बाकी सब बहुत गरीब थे। एक दिन वह बहुत महंगी घड़ी पहनकर आया था… और वही घड़ी चोरी हो गई थी… कुछ याद आया सर?”

“सातवीं कक्षा???”

“हाँ सर… उस दिन मेरा मन उस घड़ी पर आ गया था… खेल के पीरियड में जब उसने वह घड़ी अपने पेंसिल बॉक्स में रख दी थी, तो मैंने मौका देखकर चुरा ली… उसके बाद आपका पीरियड था… उस लड़के ने आपके पास घड़ी चोरी होने की शिकायत की।

आपने कहा था कि जिसने भी वह घड़ी चुराई है, वह वापस कर दे… आप उसे सज़ा नहीं देंगे… लेकिन डर के मारे मेरी हिम्मत ही न हुई घड़ी वापस करने की।”

“फिर आपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और हम सबको एक लाइन में आंखें बंद कर खड़े होने को कहा… आपने कहा था कि आप सबकी जेब देखेंगे, लेकिन जब तक घड़ी मिल नहीं जाती, कोई आंखें नहीं खोलेगा… वरना उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा।”

“हम सब आंखें बंद किए खड़े थे… आप एक-एक करके सबकी जेब देख रहे थे… जब आप मेरे पास आए, तो मेरी धड़कन बहुत तेज़ हो गई… मुझे लगा अब मेरी चोरी पकड़ी जाएगी… मेरी पूरी ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी… मैं ग्लानि से भर उठा था… उसी क्षण मन ही मन जान देने तक का निश्चय कर लिया था… लेकिन…”

(उसकी आवाज़ कांपने लगी…)

“लेकिन सर… मेरी जेब से घड़ी मिलने के बाद भी… आपने किसी को कुछ नहीं बताया… आप चुपचाप आगे बढ़े… बाकी सबकी भी जेब देखी… और फिर अंत में घड़ी उस लड़के को लौटा दी… बस इतना ही कहा,
‘अब ऐसी घड़ी पहनकर स्कूल मत आना… और जिसने भी यह चोरी की है, वह दोबारा ऐसा न करे।’

फिर आप हमेशा की तरह पढ़ाने लगे… न मुझे सज़ा मिली… न शर्मिंदगी… न भेदभाव…

(उसकी आँखें भर आईं…)

“आपने मुझे सबके सामने चोर बनने से बचा लिया, सर… जीवन भर के लिए आपकी इस दया और समझदारी ने मुझे बदल दिया… उसी दिन मैंने निर्णय लिया था कि मैं भी आपके जैसा शिक्षक बनूँगा, जो बच्चों को सुधारने का अवसर दे, न कि उन्हें तोड़े।”

(वृद्ध शिक्षक की आँखों में चमक आ गई…)

“हाँ… हाँ… अब मुझे याद आ रहा है।”

(फिर कुछ सोचकर चकित से बोले…)
“लेकिन बेटा… मैं आज तक नहीं जानता था कि वह चोरी किसने की थी… क्योंकि जब मैं तुम सबकी जेब देख रहा था… तब मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली थीं…!”

“ओह…”
(उस छात्र की आँखों से आंसू बह निकले…)
“आज जिंदगी का एक और बड़ा पाठ आपसे सीख कर जा रहा हूँ, सर…।”

——
संवेदनशीलता, समझ और सच्चे शिक्षक की यही पहचान होती है… जो बच्चों की गलतियों को सुधारने का अवसर देते हैं, न कि उन्हें हमेशा के लिए दोषी बना देते हैं।

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