दर्ज़ी,धुनिया और रंगरेज समाज के नेताओं की उपेक्षा जदयू को मंहगी पड़ सकती है — शीघ्र आयोगों में अध्यक्ष बनाकर समाज को सम्मान दे पार्टी-राजू वारसी

दस्तकार दर्ज़ी आयोग” ,धुनिया आयोग और “रंगरेज आयोग” नाम से तीन स्वतंत्र आयोगों का गठन करने की मांग

बिहार की सामाजिक और राजनीतिक धरातल पर पिछड़े वर्गों की भागीदारी को लेकर लगातार उठती आवाजों के बीच दर्ज़ी,धुनिया और रंगरेज समाज के नेताओं की उपेक्षा अब गहराते असंतोष का कारण बनती जा रही है। इन समाजों ने जदयू से स्पष्ट रूप से यह मांग की है कि यदि पार्टी को इन समाजों का समर्थन चाहिए, तो वह तात्कालिक रूप से तीनों समाजों के लिए स्वतंत्र आयोग गठित करे और उनके प्रभावशाली नेताओं को आयोगों का अध्यक्ष बनाए।

दर्ज़ी,धुनिया और रंगरेज—ये तीनों ही समाज न केवल संख्याबल में मजबूत हैं, बल्कि बिहार की सामाजिक संरचना और अर्थव्यवस्था में इनकी भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। कपड़ा, रंगाई, सिलाई, बुनाई जैसे पारंपरिक एवं कुटीर उद्योगों में इन समाजों का योगदान ऐतिहासिक रहा है, किंतु राजनीति में इन्हें वह सम्मान और प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया, जिसके वे वास्तविक हकदार हैं।

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जदयू के नेतृत्व में चल रही सरकार द्वारा पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों की बात तो बार-बार की जाती है, लेकिन धरातल पर जब नीतिगत निर्णयों और राजनीतिक नियुक्तियों की बात आती है, तो यह देखा गया है कि दर्ज़ी,धुनिया और रंगरेज समाज को लगातार नजरअंदाज किया जाता है। वर्ष 2004 से अब तक राज्य के आयोगों, बोर्डों, निगमों और समितियों में इन समाजों के किसी भी प्रमुख व्यक्ति को न तो अध्यक्ष पद मिला है, न ही सदस्यता का अवसर।

राजनीतिक जागरूकता बढ़ी, अब चुप नहीं बैठेंगे समाज के लोग

आज का दर्ज़ी,धुनिया और रंगरेज समाज पहले जैसा नहीं रहा। शिक्षा, तकनीकी कौशल, व्यवसाय और सामाजिक संगठन में इन समाजों ने तेज़ी से प्रगति की है। युवा वर्ग राजनीति को लेकर जागरूक है, और अपनी आवाज़ को लोकतांत्रिक मंचों पर प्रभावी ढंग से उठा रहा है। जदयू जैसी पार्टी, जिसने सामाजिक न्याय के नाम पर सत्ता प्राप्त की, यदि इन समाजों की उपेक्षा करती रही, तो यह उसकी राजनीतिक रणनीति के लिए आत्मघाती सिद्ध होगा।

तीन आयोगों की मांग

समाज के प्रतिनिधियों ने स्पष्ट रूप से यह मांग रखी है कि बिहार सरकार को “दस्तकार दर्ज़ी आयोग” ,धुनिया आयोग और “रंगरेज आयोग” नाम से तीन स्वतंत्र आयोगों का गठन करना चाहिए। इन आयोगों के माध्यम से:

समाज के पारंपरिक व्यवसायों को आर्थिक और तकनीकी सहायता दी जाए,

स्वरोज़गार और प्रशिक्षण योजनाएं लागू की जाएं,

महिलाओं को उद्यमिता में बढ़ावा दिया जाए,

युवाओं के लिए हुनर आधारित प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर सृजित किए जाएं,

समाज की सामाजिक-शैक्षिक स्थिति का आकलन कर विकास की समग्र योजना तैयार की जाए।

इन आयोगों का नेतृत्व संबंधित समाजों के वरिष्ठ, लोकप्रिय और जमीनी कार्यकर्ताओं को सौंपा जाए, ताकि वे सीधे सरकार और समाज के बीच संवाद सेतु बन सकें।

राजनीतिक संतुलन के लिए प्रतिनिधित्व ज़रूरी

यह ध्यान देने योग्य है कि दर्ज़ी,धुनिया और रंगरेज समाज सिर्फ वोट बैंक नहीं हैं, बल्कि वे राजनीतिक संतुलन में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। यदि इन समाजों के प्रतिनिधियों को पार्टी और सरकार में स्थान नहीं दिया गया, तो यह उनकी राजनीतिक चेतना का अपमान होगा।

2004 से 2020 तक के विधानसभा चुनावों में इन समाजों ने बड़ी संख्या में जदयू को समर्थन दिया था। पंचायत और नगर निकाय चुनावों में भी इनके मतों ने पार्टी को मजबूती दी है। लेकिन यदि यह समर्थन लगातार एकतरफा बना रहा और उसका सकारात्मक राजनीतिक प्रतिफल नहीं मिला, तो आगामी 2025 विधानसभा और 2026 लोकसभा चुनाव में इन समाजों का रुख बदल सकता है।

शांतिपूर्ण चेतावनी, परन्तु ठोस संकल्प

हम यह चेतावनी पूरी गरिमा और लोकतांत्रिक भावना से दे रहे हैं कि यदि अगले 60 दिनों के भीतर आयोगों के गठन की दिशा में ठोस पहल नहीं की गई, तो धुनियां, दर्ज़ी और रंगरेज समाज के प्रतिनिधि बिहार भर में जन आंदोलन, विरोध मार्च, और राजनीतिक बहिष्कार की रणनीति पर विचार करेंगे।

हमारा लक्ष्य टकराव नहीं, सहभागिता है। लेकिन यदि हमारे अस्तित्व और अधिकार को नजरअंदाज किया गया, तो हमें भी अपने रास्ते तय करने होंगे।

समाज की प्रमुख मांगें संक्षेप में:

  1. तीनों समाज के लिए स्वतंत्र आयोगों का गठन (दस्तकार दर्ज़ी आयोग,धुनिया आयोग,रंगरेज आयोग)
  2. प्रत्येक आयोग में समाज के प्रभावशाली और सक्रिय नेता को अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया जाए
  3. समाज के पारंपरिक व्यवसायों को संरक्षित और प्रोत्साहित किया जाए
  4. सरकारी योजनाओं में इन समाजों की भागीदारी सुनिश्चित हो
  5. जिला स्तर पर समाज के लिए विशेष हुनर विकास केंद्र खोले जाएं
  6. जदयू संगठन में समाज को उचित प्रतिनिधित्व और पद दिए जाएं
    दर्ज़ी,धुनिया और रंगरेज समाज अब अपने अधिकारों को लेकर जागरूक और संगठित हो रहा है। यह सिर्फ चेतावनी नहीं, समाज की पीड़ा और अधिकार की पुकार है। हम चाहते हैं कि जदयू नेतृत्व इस मांग को गंभीरता से ले और शीघ्र ही कार्रवाई करे। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो आने वाला समय जदयू के लिए सामाजिक और राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।

— दर्ज़ी-धुनिया-रंगरेज संयुक्त संघर्ष मोर्चा
राजू वारसी
(राज्यस्तरीय प्रतिनिधिमंडल)

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