लेखक: RAJU WARSI
कुछ मुलाक़ातें महज़ संयोग नहीं होतीं – वे ज़िंदगी की उस स्क्रिप्ट का हिस्सा होती हैं जिसे हम उस वक़्त समझ नहीं पाते, लेकिन वक़्त गुजरने के साथ उनकी गहराई सामने आती है। ऐसी ही एक मुलाक़ात हुई एक शाम, पटना की हल्की धूप और हलचल के बीच।
उस दिन मैं चुनाव आयोग की एक औपचारिक बैठक से निकल रहा था। पटना के एमएलए फ्लैट के पास अपने जिगरी यार, इफ्तेखार भाई उर्फ़ ‘कुक्कू’ की दर्ज़ी की दुकान पर पहुँचा। शाम का समय था, हवा में दावत की गंध थी – क्योंकि हमें पटना क्लब में एक शादी में शरीक़ होना था। पर तभी, कहानी ने एक नया मोड़ लिया।

कुक्कू भाई ने कहा, “राजू भाई, एक ज़रूरी काम है – ये कपड़ा शादी के मौके पर इरफ़ान अहमद फातमी साहब के दोस्त के घर पहुँचाना है।”
इरफ़ान साहब – एक ऐसा नाम जिससे वर्षों पुरानी दोस्ती की भीनी स्मृति जुड़ी थी। इस बहाने उनसे मुलाक़ात की उम्मीद और भी दिलचस्प हो गई।
हम बाइक से रवाना हुए। शहर की गलियों से होते हुए सब्ज़ी मंडी के पास पहुँचे, जहां सामने एक पुराना सा चल जांच केंद्र था। वहीं एक शांत-संकोची मुस्कुराहट लिए वे सज्जन खड़े थे। उन्होंने इशारे से अंदर आने का कहा। दरवाज़े के भीतर एक छोटा-सा, लेकिन बेहद सजीव घर था – एक विशाल पेड़ की छांव में बसा हुआ, जो मानो अपनी जड़ों में कितनी कहानियाँ समेटे था।
हमें बिठाया गया। गर्मजोशी से पानी, फिर चाय और साथ में सादा लेकिन स्वाद से भरा नाश्ता मेज़ पर आया। वातावरण एकदम आत्मीय हो गया था।
बातचीत शुरू हुई – हल्की, घरेलू, हँसी से भरी। कुक्कू भाई ने गर्व से बताया कि उनकी बेटी ने सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में स्कूल में प्रथम स्थान पाया है। सबकी आंखों में चमक थी।
तभी एक जानी-पहचानी आवाज़ आई – इरफ़ान अहमद फातमी साहब तशरीफ़ ला चुके थे। वर्षों बाद उन्हें देखकर दिल में उमंग सी दौड़ गई। उन्होंने हमेशा की तरह जोशीले अंदाज़ में हाथ मिलाया।
बातें चलीं – पुरानी यादें, नए हालात और ज़िंदगी के रंग।
जब परिचय हुआ इरफ़ान साहब के मित्र से, तो मालूम हुआ कि वे स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत हैं। बेहद संजीदा और सौम्य व्यक्तित्व। हमने सोचा – अच्छा इंसान हैं, मगर शायद यही तक।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
उसी शाम, जब मैं घर लौटा, मन में उस मुलाक़ात की गर्माहट अब भी ताज़ा थी। यूँ ही फेसबुक खोला और देखा – वही सज्जन, जिनसे हम एक संयोगवश घर में मिले थे, वही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी… वे दरअसल तुषार कांत उपाध्याय हैं – एक प्रतिष्ठित साहित्यकार और कवि। उनकी कविताएँ, लेख और पुस्तकें देशभर की पत्रिकाओं और समाचार पत्रों की शोभा बनी हुई हैं।
मैं स्तब्ध था। उस एक कमरे के साधारण घर में छिपा बैठा था एक असाधारण रचनाकार – जिनकी कलम दिलों की मिट्टी में उम्मीदों के बीज बोती है। और मैं, अंजाने ही, उस वटवृक्ष की छांव में बैठ आया था।
वो मुलाक़ात अब एक याद से कहीं ज़्यादा है – वो एक सबक है कि हर चेहरा एक किताब होता है, हर मुलाक़ात में एक कविता छिपी होती है – बस ज़रूरत है उसे पढ़ने की नज़र की।