परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद: भारत माता का बब्बर शेर

परमवीर वीर अब्दुल हमीद: भारत माता का बब्बर शेर

“जो मिट गया वतन के वास्ते, वो नाम अमर हो जाता है,
शहीदों की इस मिट्टी से, हर फूल तिरंगा बन जाता है!”

जब बात होती है भारत-पाक युद्ध की, जब बात होती है सरहद पर दुश्मनों को सबक सिखाने की, तो इतिहास के पन्नों में जो नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज है—वो है परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद का।

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धरमपुर गाँव में, एक साधारण इदरिसी या दर्ज़ी समाज में जन्मे अब्दुल हमीद ने यह साबित कर दिया कि शौर्य, पराक्रम और देशभक्ति खून में नहीं, जज़्बे में होती है। उन्होंने जोश और जुनून से भरकर वह कर दिखाया जो आज भी हर भारतीय सैनिक के दिल को गर्व से भर देता है।

1965 का भारत-पाक युद्ध और अब्दुल हमीद की वीरता

सितंबर 1965 — भारत-पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ चुकी थी। पाकिस्तान अमेरिका से मिले M48 पैटन टैंकों के बल पर भारत को रौंद डालना चाहता था। पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने सोचा कि भारत के पास इन टैंकों का कोई जवाब नहीं है।

लेकिन वह नहीं जानता था कि भारत की रगों में वीर अब्दुल हमीद जैसा शेर दौड़ रहा है, जो अपने देश के लिए प्राणों की बाज़ी लगाने से नहीं डरेगा।

अब्दुल हमीद, 4 ग्रेनेडियर रेजिमेंट में कंपनी क्वार्टर मास्टर हविलदार के पद पर तैनात थे। उनके पास थे 105 मिमी की रिकॉयललेस गन, जो जीप पर माउंट की जाती थी। यह गन पैटन टैंकों के सामने बच्चों का खिलौना मानी जाती थी — लेकिन अब्दुल हमीद के हाथों में यह दुश्मनों के लिए काल बन गई।

10 सितंबर 1965: वो ऐतिहासिक बलिदान

10 सितंबर, खेमकरण सेक्टर में लड़ते हुए अब्दुल हमीद ने दुश्मन के 7 पैटन टैंकों को उड़ा दिया। जैसे ही वे आठवें टैंक को निशाना बना रहे थे, दुश्मन की गोलियों ने उन्हें छलनी कर दिया। पर आखिरी सांस तक वे डटे रहे।

बलिदान अमर हो गया — परमवीर चक्र से सम्मानित

वीरगति पाने के बाद अब्दुल हमीद को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान “परमवीर चक्र” से नवाज़ा गया।

उनकी धर्मपत्नी रसूलन बीबी, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, ने उनका सम्मान पूरे देश के सामने गर्व से ग्रहण किया। आज वे भी हमारे स्मृति और श्रद्धा में अमर हैं।

इदरिसी या दर्ज़ी समाज का गौरव, भारत का अभिमान

अब्दुल हमीद न सिर्फ भारतीय सेना के, बल्कि इदरिसी या दर्ज़ी समाज के भी आदर्श हैं। उन्होंने यह संदेश दिया कि राष्ट्रभक्ति जाति, धर्म या वर्ग से नहीं — आत्मा से होती है।

आज भी इस समाज के सैकड़ों युवक सेना में भर्ती होकर उसी परंपरा को निभा रहे हैं — देश के लिए जीना और देश के लिए मरना।

राष्ट्रीय स्तर पर शौर्य का प्रचार: अली इमाम भारती और उनके साथियों का योगदान

आज हम जिनके बलिदान को याद करते हैं, उन्हें नई पीढ़ी तक पहुंचाने का श्रेय उन कर्मठ लोगों को भी जाता है, जो हर वर्ष वीरता की यह मशाल जलाए रखते हैं।

वीर अब्दुल हमीद फाउंडेशन एवं इदरिसीया दर्ज़ी फेडरेशन” के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अली इमाम भारती एवं उनके अनेको साथियों द्वारा जो वर्षों से बिहार में हर साल 10 सितंबर को शहादत दिवस मना रहे हैं। उन्होंने वीर अब्दुल हमीद के नाम को आम जनमानस के दिलों-दिमाग में बसाने के लिए अथक परिश्रम कर रहे हैं
उनके इस प्रयास से नई पीढ़ी को न केवल अपने नायकों की जानकारी मिलती है, बल्कि उनमें देशभक्ति, शौर्य और सेवा की प्रेरणा भी जागृत होती है। समाज और राष्ट्र को ऐसे सभी कर्मवीरों पर गर्व है।
आज के वीरों के नाम एक पैग़ाम
आज जब देश की सीमाओं पर फिर से तनाव है, जब भारत के जवान हर मोर्चे पर डटे हैं, तो अब्दुल हमीद की शहादत हमें याद दिलाती है कि एक आदमी भी जंग का रुख बदल सकता है।

हमें उनके जैसे शहीदों की गाथाओं को हर गाँव, हर शहर, हर स्कूल और हर मंच पर सुनाना चाहिए ताकि अगली पीढ़ी जान सके कि “देश की रक्षा केवल हथियारों से नहीं, इरादों से होती है।”

अंत में एक प्रण लें

हम सब भारत के बेटे हैं,
हम अब्दुल हमीद जैसे सपूतों की मिट्टी में पले हैं।
हमारी रगों में वह लहू दौड़ता है जो दुश्मनों को थर्रा दे।
हम उनके बलिदान को कभी न भूलें,
बल्कि उन्हें हर पल याद कर अपने कर्म में उतारें।

जय हिंद, जय भारत,
शत-शत नमन परमवीर चक्र विजेता शहिद वीर अब्दुल हमीद

राजू वारसी
प्रदेश महासचिव
इदरिसीया दर्ज़ी फेडरेशन
बिहार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *